नमस्कार !
बळीराजावर आपले स्वागत आहे. |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रकाशन दिनांक | लेखनविभाग | शीर्षक | लेखक | प्रतिसाद | वाचने | अंतिम अद्यतन |
---|---|---|---|---|---|---|
28/09/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 2 | 1,434 | 5 वर्षे 6 months |
30/09/18 | गझल | गझल | Dhirajkumar Taksande | 798 | 5 वर्षे 6 months | |
02/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 2 | 1,882 | 5 वर्षे 5 months |
03/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 4 | 4,108 | 5 वर्षे 5 months |
06/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 1,216 | 5 वर्षे 5 months | |
10/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 7 | 5,393 | 5 वर्षे 3 months |
14/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 1 | 2,253 | 5 वर्षे 3 months |
15/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 3 | 2,766 | 5 वर्षे 3 months |
16/10/18 | गझल | गझल | Dhirajkumar Taksande | 2 | 2,269 | 5 वर्षे 3 months |
30/10/18 | गझल | गझल | Dr. Ravipal Bha... | 5 | 2,739 | 5 वर्षे 3 months |
10/10/18 | गझल | गझल: राजसत्ता | Rajesh Jaunjal | 2 | 2,120 | 5 वर्षे 3 months |
06/10/18 | गझल | गझल: सर्वहारा | Dhirajkumar Taksande | 1 | 1,271 | 5 वर्षे 3 months |
12/09/18 | गझल | गर्भार कास्तकारी | Ramesh Burbure | 11 | 6,843 | 5 वर्षे 2 months |
30/09/18 | छंदमुक्त कविता | गांधीबाबा | Kiran dongardive | 1 | 1,064 | 5 वर्षे 3 months |
15/09/18 | पद्यकविता | गोट तुमी वो ऐका | K N Salunke | 2 | 1,311 | 5 वर्षे 3 months |
15/09/18 | पद्यकविता | गोट तुमी वो ऐका | K N Salunke | 1 | 1,798 | 5 वर्षे 3 months |
02/10/18 | पद्यकविता | घायाळ फौज | Rajesh Jaunjal | 2 | 1,712 | 5 वर्षे 3 months |
27/09/18 | पद्यकविता | घाला दोन रेघा... | Raosaheb Jadhav | 1 | 959 | 5 वर्षे 3 months |
02/10/18 | ललितलेख | चिमण्या परत आल्या ; अन् गेल्याही | Bhaskar Bhujang... | 1 | 1,612 | 5 वर्षे 3 months |
21/09/18 | गझल | चोरीस सूट आता | प्रदीप थूल | 5 | 3,107 | 5 वर्षे 3 months |
20/09/18 | छंदमुक्त कविता | छंदमुक्त कविता- धावपट्टी | Rajesh Jaunjal | 3 | 2,230 | 5 वर्षे 3 months |
20/09/18 | वैचारिक लेख | तुमचे धोरण, हेच आमचे मरण... | पंकज गायकवाड | 3 | 2,645 | 5 वर्षे 3 months |
29/09/18 | गीतरचना | तू रे पोशिंदा जगाचा | ravindradalvi | 3 | 3,312 | 5 वर्षे 3 months |
16/09/18 | गझल | ते प्रेत बोलताहे | Dhirajkumar Taksande | 2 | 1,912 | 5 वर्षे 3 months |
23/09/18 | छंदोबद्ध कविता | दारिद्र्य | मुक्तविहारी | 2 | 1,779 | 5 वर्षे 3 months |